राजसमंद. देवगढ़ मे श्री करणीमाता विशाल पशु एवं दशहरा मेले मे दशहरे के तीसरे दिन मंगलवार को दिनभर आसपास के ग्रामीण अंचलों से आए लोगों की भीड़ मेले मे पहुंची] खरीददारी की साथ ही मनोरंजन के साधनों मे खूब मजे किए। मेले में नगरवासियों के साथ ही ग्रामीणों ने अपनी जरुरत का सामान खरीदा। मंगलवार को मेले में जन सैलाब उमडऩे से व्यापारियों में भी उत्साह दिखाई दिया। मेले में पुरुष-महिलाओं ने घरेलु सामग्री की खरीदी की। साथ ही महिलाओ ने भी अपनी जरूरत के सामनो की खरीदी की। मेले में मनोरंजन बाजार में सबसे अधिक भीड़ दिखाई दी। इधर बच्चों ने खिलोनो की खरीदी के साथ खाने पीने के सामनो पर अधिक ध्यान दिया। सबसे ज्यादा पानी पकोड़ी, चाट, भेल-पुड़ी एवं आइसक्रीम की दुकानों पर भीड़ देखी गई। इधर सोमवार रात्रि में शहरी लोगों की भीड़ भी देखने को मिली जिससे मेले में आए व्यापारियों के चेहरे पर खुशी नजर आई।
मेलार्थियों की सबसे पसंदीदा मिठाई बन गया आगरा का पेठा
श्री करणीमाता विशाल पशु एवं दशहरा मेला नगर में पिछले 67 वर्षों से आयोजित हो रहा है, लेकिन इस मेले में आने वाला शायद ही कोई ऐसा मेलार्थी होगा, जिसने यहां मिलने वाले आगरा के पेठों का स्वाद नहीं चखा हो।मेले में सिर्फ नगरवासी ही नहीं, बल्कि ग्रामीण क्षेत्रों से आने वाले लोग भी इसका स्वाद लिए बिना नहीं रह पाते हैं। आगरा के पेठे का स्वाद यूं तो देश ही नहीं विदेश में भी पहचान रखता है, लेकिन खासतौर पर मीठे के शौकीन लोगों की तो यह पहली पसंद माना जाता है। ऐसे में इस मेले में मनोरंजन, मीना बाजार, मुख्य बाजार में मेलार्थी कई तरह की खरीददारी करते हैं। इसके साथ ही खानपान की बात करें तो परंपरागत चटपटे व्यंजनों के साथ ही पिज्जा, बर्गर, मोमोज, पाव भाजी आदि युवाओं की पहली पसंद माने जाते हैं। लेकिन, देवगढ़ मेले में मेले में भ्रमण करने के दौरान जैसे ही आसपास दुकानों पर या चलते-फिरते ठेलों पर पेठे की मीठी-मीठी खुशबू आती है तो हर किसी का मन कह उठता है कि क्यों न कुछ मीठा हो जाए और फिर वे पेठे का स्वाद चखने से स्वयं को रोक नहीं पाते। आज भी इस मेले में जितना मशहूर आगरे का पेठा है, उतना दूसरा और कोई नहीं खाद्य पदार्थ या मिठाई नहीं है। वरिष्ठ लोगों का मानना है कि ये एक एनर्जी बूस्टर है, जिससे मेले में घूमने होने वाली थकान दूर हो जाती है।
मेले में दो दर्जन से अधिक ठेले एवं दुकानें
मथुरा से आए पेठे के व्यापारी गोपाल सक्सेना ने बताया कि वे और उनका परिवार पिछले 20 सालों से मेले में आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि रोज पेठे का एक थाल यानी करीब 20 से 30 किलो तक की बिक्री हो जाती है। उन्होंने बताया कि मेले में लगभग तीस छोटे ठेले और बड़ी दुकानें लगी हुई है, जहां की औसत बिक्री के हिसाब से रोजाना करीब छह सौ किलाे तक की बिक्री हो जाती है। सक्सेना ने बताया कि देश की आजादी के बाद से अब तक पेठे में खूब बदलाव आए हैं। 1940 के दशक में सिर्फ दो तरह के पेठे बनते थे, लेकिन अब 50 से ज्यादा तरह के पेठे बन रहे हैं। हालांकि मेले में शुरुआत से अब तक एक तरह का पेठा ही आता है।