मधुसूदन शर्मा
राजसमंद.वीरों और वीरांगनाओ की इस धरा पर आपने राजस्थान के सैकड़ों युद्ध देखे और सुने होंगे। किन्तु मेवाड़ के दिवेर नामक स्थान पर महाराणा प्रताप और मुगल सेना के बीच लड़ा गया युद्ध हमेशा के लिए इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में अंकित हो गया। इस युद्ध को इतिहास में “ बैटल ऑफ दिवेर” के नाम दिया गया। ये ऐसा युद्ध था जिसके बाद मुगल सेना ने मेवाड़ पर आक्रमण करने की हिम्मत ही नहीं कर पाई। दिवेर का युद्ध अक्टूबर 1582, विजयदशमी विक्रम संवत 1640 के दिन हुआ। विजयदशमी पर्व असत्य पर सत्य के लिए ही नहीं, बल्कि मेवाड़ में महाराणा प्रताप की जीत की खुशी में भी यह पर्व मनाया जाता है। इस युद्ध में प्रताप ने खोए राज्यों को वापस पाने में सफलता पाई थी। इस युद्ध पर विजय की याद में ये स्थल विकसित किया गया है।
25 हजार योद्धाओं की सेना की तैयार
भामाशाह से धन मिलने के बाद प्रताप ने फिर से सेना संगठित की। 25 हजार योद्धाओं की शक्तिशाली सेना तैयार की। दिवेर युद्ध की तैयारियां ईडर (गुजरात) व माउंट आबू क्षेत्र में की गई। विजयदशमी पर शस्त्र पूजन कर 25 हजार लड़ाकों में से चुनिंदा 1200 सैनिकों की एक सैन्य टुकड़ी लेकर दिवेर पर हमला बोल दिया।
प्रताप के 1200 और मुगल सेना के 15 हजार सैनिक
हल्दीघाटी युद्ध के बाद मुगलों ने 36 थाने व उनके नीचे 84 मुगल चौकियां स्थापित की थी। वीर विनोद के अनुसार प्रत्येक थाने पर एक एक हजार मुगल सैनिक तैनात रखे गए। दिवेर में प्रताप के 12 सौ सैनिकों ने मुगलों के 15 हजार सैनिको से मुकाबला किया। इसमें प्रताप की जीत हुई और मुगलों को मेवाड़ाछोड़ना पड़ा।
अमरसिंह के भाले ने सुलतान और उसके घोड़े को चीरा
इतिहासकारों के अनुसार दिवेर का प्रभारी सेरीमा सुलतान खान भी युद्ध लड़ने आया था। प्रताप के वार से उसका हाथी धराशायी हो गया। वह फिर घोड़े पर आया। यहां कुंवर अमरसिंह से उसका सामना हुआ। अमरसिंह ने सुलतान खान पर अपने भाले से इतना भीषण प्रहार किया कि भाला सुलतान खान व घोड़े को चीरता हुआ जमीन में जा धंसा।
बहलोल खान के किए दो टुकड़े
दिवेर की दक्षिण पश्चिम की चौकी पर नायक बहलोल खान नियुक्त था। महाराणा प्रताप ने युद्ध में तलवार के एक ही वार से उसे घोड़े सहित दो भागों में चीर दिया। सुलतान खान व बहलोल खान की दुर्गति के बाद मुगल सेना ने मैदान छोड़दियाय और दिवेर पर महाराणा प्रताप का आधिपत्य हो गया। यहां पराजित होने के बाद मुगल सेना जगह को छोड़कर भाग गए।
फेक्ट फाइल पर एक नजर
– 12 अक्टूबर 1997 को तत्कालीन मुख्यमंत्री भारोंसिंह शेखावत व पर्यटन मंत्री नरेंद्र कुंवर ने शिलान्यास किया।
– 18 अगस्त 2006 को स्मारक का औपचारिक शिलान्यास तत्कालीन पर्यटन मंत्री उषा पूनिया व सांसद किरण महेश्वरी ने किया।
– 2008-09 में यह स्मारक बनकर तैयार हुआ।
– 2010 में इसे एशिया का सर्वोच स्थापत्य डिजाइन का पुरुस्कार दिया गया।
– 10 जनवरी 2012 को स्मारक का लोकार्पण तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा देवीसिंह पाटिल ने किया।
इसमें ये खास बात
– यह स्मारक समुद्रीतल से 826 मीटर ऊंची पहाड़ी पर बना है।
– इसकी ऊंचाई 57 फीट है। सीढियां भी 57 है, जो प्रताप के आयु 57 वर्ष को दर्शाता है।
– यह सुलतान खान व बहलोल खान के वध की थीम पर बना है।
इनका कहना है
दिवेर की यह विजय भारतीय इतिहास में 1191 ई. की तारायण विजय के बाद हिंदू जाति की सबसे बड़ी विजय है, जो हिंदुओं में प्राण फूंकती है। दिवेर युद्ध न केवल प्रताप बल्कि मुगल इतिहास में भी बहुत निर्णायक रहा। इस युद्ध ने अकबर के विजय अभियान को रोक दिया। केवल जगन्नाथ कच्छवाह के असफल अभियान के अतिरिक्त बाद में कोई मुगल अभियान नहीं हुआ। महाराणा प्रताप चावंड को अपनी राजधानी बना मेवाड़ के चहुंमुखी विकास में जुट गए। प्रसिद्ध इतिहासकार कर्नल टॉड ने इस युद्ध को मेवाड़ के मैराथन की संज्ञा दी है।
नारायण उपाध्याय, संस्थापक एवं महामंत्री महाराणा प्रताप विजयस्मारक संस्थान दिवेर