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आप मोटरसाइकिल से करते होंगे आना- जाना, यहां देसी जुगाड़ कर चलाते हैं घाणी; आइडिया बना चर्चा का विषय

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देवगढ़, राजसमंद। हमारे देश में जुगाड़ करने वालों की कमी नहीं है जरूरत कैसी भी हो यहां जुगाड़ निकाल ही लिया जाता है। नगर में कच्ची घाणी में तिलहन की पेराई करने के काम में बैल के स्थान पर मोटरसाइकिल को घूमते देखकर लोग ठिठक जाते हैं। मौसम में बदलाव के बाद सुबह व शाम को हल्की सर्दी का अहसास होने लगा है। इसके साथ ही सर्दी के भोज्य पदार्थ भी बिकने के लिए बाजार में सज रहे हैं। नगर में तिल का तेल व सेली निकालने के लिए घाणे लगे हैं, लेकिन इनमे बैल नहीं चलते। इसे मोटरसाइकिल से जोड़ दिया गया है, जो घूमती है और घाणी से तेल व सेली निकलता है।

ना तो इस पर कोई सवार है, ना कोई गेयर चेंज कर रहा

तिलहन से बनाए जाने वाले सर्दी के मेवे को लोग खूब पसंद करते हैं, लेकिन इसे बनाने के लिए बाइक का इस्तेमाल लोगों के लिए कौतूहल का विषय बना हुआ है। मोटरसाइकिल से घाणी से तेल निकल रहा है जिसमें किस तरीके से एक बाइक अपने आप चल रही है ना तो इस पर कोई सवार है, ना तो इसका कोई गेयर चेंज कर रहा है और ना ही कोई रेस दे रहा है। नगर के बापू नगर में इस घाणी पर मोटरसाइकिल बैल का काम कर रही है।

इसका सबसे बड़ा फायदा यह है कि मोटरसाइकिल की जरूरत कहीं आने-जाने के लिए पड़ती है तो उसे जुगाड़ से बाहर निकाल कर अपना काम निपटाया जा सकता है। बैल के लिए चारा पानी व अन्य वस्तुओं की व्यवस्था के साथ उसकी देखभाल काफी मुश्किल भरा काम होता है, लेकिन बाइक से संचालित घाणे में केवल पेट्रोल की खपत होती है, जो सस्ता भी पड़ता है।

ऐसे दिया देसी जुगाड़ को अंजाम

घाणी संचालक कमलेश तेली ने बताया कि इसमें लकड़ी की गाड़ी को पहले की तरह सेंटर में रखा गया और एक निश्चित दूरी पर गहराई में गोला बनाया गया है। मोटरसाइकिल को एक लकड़ी से जोड़कर पत्थर का वजन दिया गया है। बाइक को जोड़ने वाली लकड़ी की दूरी इतनी रखी गई है कि वह गोले में ही घूमती रहे। कमलेश के मुताबिक बैल अब कम प्रासंगिक हो गए हैं और बैल रखना बहुत खर्चीला भी है।

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November 10, 2024

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